भारतीय संस्कारों में गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है बल्कि आत्मा के परमात्मा से मिलन का ज़रिया है. हमारे देश में गंगा को एक पूजनीय नदी माना जाता है और इसे मां का दर्जा दिया जाता है. मां गंगा के प्रति देश के लोगों की आस्था बहुत गहरी हैं. अगर कोई व्यक्ति गंगा के बारे में अभद्र टिप्पणी कर दें तो हमारे देश में दंगे हो जाएंगे लेकिन सच्चाई ये है कि अपनी पूजनीय मां गंगा को हमने एक नाला बनाकर छोड़ दिया है. आपने देखा होगा कि देश के लोग आज भी अपने घरों में गंगाजल को किसी बर्तन या बोतल में भरकर बड़ी पवित्रता के साथ रखते हैं. पूजा-पाठ के दौरान बड़ी शुद्धता के साथ गंगाजल का आचमन किया जाता है.
इलाहाबाद और वाराणसी देश के सबसे बड़े तीर्थस्थलों में गिने जाते हैं. इन शहरों से गुजरने वाली गंगा नदी में लाखों लोग आस्था की डुबकी लगाते हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि लोगों के पाप धोने वाली गंगा अब एक नाला बन चुकी है. और नाले में डुबकी लगाने से मुक्ति नहीं बीमारियां मिलती हैं. डॉक्टरों के मुताबिक bacteria वाले इस प्रदूषित पानी के इस्तेमाल से कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं और सबसे ज़्यादा ख़तरा Hepatitis A नामक बीमारी का होता है. CPCB की रिपोर्ट में गंगा नदी में प्रदूषण का सबसे कम स्तर उत्तराखंड में है.
इसके अलावा वर्ष 2011 में World Bank गंगा की सफाई के लिए भारत सरकार को 6 हज़ार 500 करोड़ रुपये का लोन दिया था. इसके बाद वर्ष 2015 में NDA की सरकार ने नमामी गंगे परियोजना के तहत 20 हज़ार करोड़ रुपये का बजट तैयार किया जिसमें से करीब 7000 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं लेकिन गंगा की हालत देखकर लगता है कि इन योजनाओं का लाभ गंगा तक पहुंचा ही नहीं. 21वीं सदी के भारत की दुखद तस्वीर यही है...कि सदियों तक करोड़ों लोगों को मोक्ष दिलाने वाली गंगा. आज खुद ही अपनी हालत पर आंसू बहा रही है.
Source:-Zee News
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इलाहाबाद और वाराणसी देश के सबसे बड़े तीर्थस्थलों में गिने जाते हैं. इन शहरों से गुजरने वाली गंगा नदी में लाखों लोग आस्था की डुबकी लगाते हैं. लेकिन सच्चाई ये है कि लोगों के पाप धोने वाली गंगा अब एक नाला बन चुकी है. और नाले में डुबकी लगाने से मुक्ति नहीं बीमारियां मिलती हैं. डॉक्टरों के मुताबिक bacteria वाले इस प्रदूषित पानी के इस्तेमाल से कई गंभीर बीमारियां हो सकती हैं और सबसे ज़्यादा ख़तरा Hepatitis A नामक बीमारी का होता है. CPCB की रिपोर्ट में गंगा नदी में प्रदूषण का सबसे कम स्तर उत्तराखंड में है.
इसके अलावा वर्ष 2011 में World Bank गंगा की सफाई के लिए भारत सरकार को 6 हज़ार 500 करोड़ रुपये का लोन दिया था. इसके बाद वर्ष 2015 में NDA की सरकार ने नमामी गंगे परियोजना के तहत 20 हज़ार करोड़ रुपये का बजट तैयार किया जिसमें से करीब 7000 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं लेकिन गंगा की हालत देखकर लगता है कि इन योजनाओं का लाभ गंगा तक पहुंचा ही नहीं. 21वीं सदी के भारत की दुखद तस्वीर यही है...कि सदियों तक करोड़ों लोगों को मोक्ष दिलाने वाली गंगा. आज खुद ही अपनी हालत पर आंसू बहा रही है.
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