बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड(जदयू)-बीजेपी के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चलने की अटकलों के बीच नीतीश कुमार की पार्टी ने 2019 के लिहाज से बड़ा दांव चल दिया है. रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जदयू के वरिष्ठ नेताओं की बैठक के बाद प्रवक्ता अजय आलोक ने कहा कि अगले लोकसभा में उनकी पार्टी बिहार में 25 सीटों और बीजेपी 15 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इसके साथ ही पार्टी ने स्पष्ट किया कि नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए का चेहरा होंगे और जिस तरह दिल्ली में बीजेपी 'बड़े भाई' की भूमिका में है, उसी तरह बिहार में जदयू की भूमिका होगी.
2014 में NDA को मिली थी 31 सीटें
यहीं से बड़ा सवाल उठ रहा है कि आम चुनावों के लिहाज से क्या बीजेपी के साथ नीतीश कुमार की 'डील' हो गई है? लेकिन बीजेपी की रहस्यमयी 'चुप्पी' कुछ और ही इशारा करती है. दरअसल 2014 के लोकसभा चुनावों में बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने अकेले 22 सीटें जीती थीं. उसकी सहयोगी रामविलास पासवान की लोजपा ने छह और उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा ने 3 सीटें जीती थीं. इस तरह एनडीए को कुल 31 सीटें मिली थीं.
वहीं जदयू को केवल दो, राजद को चार, कांग्रेस को दो और राकांपा को एक सीट मिली थी. पिछली बार इन सभी दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. उस वक्त नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो चुके थे. 2015 में एनडीए कैंप में वापसी के बाद बिहार में नीतीश कुमार को क्या 25 सीटें देने पर बीजेपी राजी हो जाएगी? इस वक्त यही सबसे बड़ा सवाल है. ऐसा इसलिए क्योंकि फिर लोजपा और रालोसपा का क्या होगा? क्या बीजेपी अपने खाते से उनको सीटें देगी? फिर बीजेपी के लिए क्या बचेगा?
पासवान फैक्टर
इसके साथ ही जदयू ने स्पष्ट किया है कि वह बिहार के लिए केंद्र से विशेष राज्य के दर्जे की मांग को और तेजी से उठाएगी. यह नीतीश कुमार की सोई हुई मांग है जिसको चुनाव से ऐन पहले फिर से जिंदा किया जा रहा है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू द्वारा इस मुद्दे पर एनडीए से अलग होने के बाद बिहार में इस मुद्दे ने फिर से तूल पकड़ना शुरू कर दिया है. आश्चर्यजनक रूप से केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने भी जदयू की इस मांग का समर्थन किया है. इसके पीछे भी सियासी जानकारों का मानना है कि इसके माध्यम से क्या रामविलास पासवान चुनावों में अपने लिए सीट-शेयरिंग में कोई रास्ता निकालने की कोशिशों में हैं?
Source:-ZEENEWS
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2014 में NDA को मिली थी 31 सीटें
यहीं से बड़ा सवाल उठ रहा है कि आम चुनावों के लिहाज से क्या बीजेपी के साथ नीतीश कुमार की 'डील' हो गई है? लेकिन बीजेपी की रहस्यमयी 'चुप्पी' कुछ और ही इशारा करती है. दरअसल 2014 के लोकसभा चुनावों में बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से बीजेपी ने अकेले 22 सीटें जीती थीं. उसकी सहयोगी रामविलास पासवान की लोजपा ने छह और उपेंद्र कुशवाहा की रालोसपा ने 3 सीटें जीती थीं. इस तरह एनडीए को कुल 31 सीटें मिली थीं.
वहीं जदयू को केवल दो, राजद को चार, कांग्रेस को दो और राकांपा को एक सीट मिली थी. पिछली बार इन सभी दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा था. उस वक्त नीतीश कुमार एनडीए से अलग हो चुके थे. 2015 में एनडीए कैंप में वापसी के बाद बिहार में नीतीश कुमार को क्या 25 सीटें देने पर बीजेपी राजी हो जाएगी? इस वक्त यही सबसे बड़ा सवाल है. ऐसा इसलिए क्योंकि फिर लोजपा और रालोसपा का क्या होगा? क्या बीजेपी अपने खाते से उनको सीटें देगी? फिर बीजेपी के लिए क्या बचेगा?
पासवान फैक्टर
इसके साथ ही जदयू ने स्पष्ट किया है कि वह बिहार के लिए केंद्र से विशेष राज्य के दर्जे की मांग को और तेजी से उठाएगी. यह नीतीश कुमार की सोई हुई मांग है जिसको चुनाव से ऐन पहले फिर से जिंदा किया जा रहा है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू द्वारा इस मुद्दे पर एनडीए से अलग होने के बाद बिहार में इस मुद्दे ने फिर से तूल पकड़ना शुरू कर दिया है. आश्चर्यजनक रूप से केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने भी जदयू की इस मांग का समर्थन किया है. इसके पीछे भी सियासी जानकारों का मानना है कि इसके माध्यम से क्या रामविलास पासवान चुनावों में अपने लिए सीट-शेयरिंग में कोई रास्ता निकालने की कोशिशों में हैं?
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